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व्यंग्य

दलित की बेटी

राजकिशोर


इस लोक सभा चुनाव की जिस घटना ने मुझे बुरी तरह आहत किया, वह है मायावती के साथ वोटरों का सलूक। वह बेचारी भारत का प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं, पर यह मौका हाथ से निकल गया। उलटे वोट बाजार में उन्हें मार खानी पड़ी। उगते हुए सितारे को असमय ग्रहण लग गया। क्या बावरा देश है! वह समझता ही नहीं कि किसे वोट देना चाहिए और किसे नहीं। बताइए, यह भी कोई बात हुई कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जिता दिया और बसपा को धूल चटा दी। अरे, मायावती को प्रधानमंत्री बनाने की ख्वाहिश नहीं थी, तो उन्हें उ.प्र. की मुख्यमंत्री क्यों बनाया! पता नहीं है कि किसी की आधी भूख मिटा कर उसके सामने से थाली नहीं हटा लेनी चाहिए?

मायावती के पराभव से मन बहुत खिन्न था। सोचा, शर्मा जी के पास चलूँ। शायद वहाँ कुछ समाधान निकल आए। उनके पास हर पहेली का कुछ न कुछ हल रहता है। तब और मजा आता है, जब वे कोई पहेली सुलझाते-सुलझाते एक नई पहेली गढ़ने लगते हैं। मैं चुप रह कर उन्हें सुनता रहता हूँ। उनके साथ रहते-रहते इतना इल्म तो हो ही गया है कि यह दुनिया ही एक पहेली है। इस मामले में अल्बर्ट आइंस्टीन की राय से मैं सहमत नहीं हूँ जो मानते थे कि ईश्वर पासे नहीं फेंकता। वह नहीं फेंकता होता, तो हम पासे क्यों फेंकते हैं?

शर्मा जी अभी-अभी कहीं से लौटे थे। उनके कपड़े धूल से पटे हुए थे। मैं कुछ पूछूँ, इसके पहले ही उन्होंने बताना शुरू कर दिया, 'पास की दलित बस्ती से लौट रहा हूँ। वहाँ चार दिन से पानी नहीं आ रहा है। बस्ती के लोग नगर निगम गए, तो उन्हें ताना सुनने को मिला, 'जाओ, जाओ, अब पानी तभी आएगा, जब मायावती प्रधानमंत्री बन जाएँगी। तुम लोग कांग्रेस सरकार का पानी पीना थोड़े ही पसंद करोगे!' मुझे पता चला, तो दौड़ा-दौड़ा गया। किसी तरह मना-मुना कर पानी का बंदोबस्त करवाया।'

मैं चकित, 'क्या पानी भी कांग्रेसी या कम्युनिस्ट, भाजपाई या बसपाई होता है? जैसे पहले रेलवे स्टेशनों पर हिन्दू पानी, मुसलमान पानी हुआ करता था!'

शर्मा जी को मेरे अज्ञान पर दुख हुआ। बोले, 'तुम भारतीय समाज को नहीं जानते। जब यहाँ भगवान राम को रोजा-नमाज वालों के खिलाफ खड़ा किया जा सकता है, तो पानी क्या चीज है? प्रशासन उधर ही झुकता है जिधर शासन की बगाडोर होती है। तुमने देखा नहीं, जो भी रेल मंत्री बनता है, वह अपने राज्य के लिए सबसे अधिक रेलगाड़ियाँ चलवाने लगता है!'

'सो तो ठीक है। दलितों के साथ भेदभाव अभी भी कायम है। तभी तो एक दलित की बेटी के मन में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा पैदा हुई, तो सभी उसके खिलाफ हो गए। चुनाव का रंग ही बदल गया। कांग्रेस की सरकार बनवा दी गई।' मैंने रुआँसा होते हुए कहा।

'दलित की बेटी? मैं दलितों की बात कर रहा था।' शर्मा जी की त्यौरियाँ चढ़ने लगीं।

'तो आप मायावती को दलित नहीं मानते?' मेरे अचरज की सीमा नहीं रही। शर्मा जी को यह क्या हो गया?

'नहीं, मैं उन्हें दलित नहीं मानता। दलित की बेटी वे जरूर हैं, पर उ.प्र. का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी, करोड़ों की पूँजी जमा करने के बाद भी जो अपने को दलित बतलाता है, उसे दलित मानने के लिए कम से कम मैं तैयार नहीं हूँ।' शर्मा जी ने तैश के साथ कहा।

'फिर भी वे दलितों की नेता तो हैं ही।' मैं मैदान छोड़ने के लिए तैयार

नहीं था।

शर्मा जी के पाँवों में अंगद की-सी ताकत आ गई, 'दलितों का नेता क्या हीरा-मोती पहनता है? क्या वह राज्य भर में अपनी मूर्ति खड़ा करवाता रहता है? क्या उसकी संपत्ति की थाह लेने के लिए सीबीआई उसके पीछे पड़ी रहती है? क्या वह हर सरकारी दफ्तर से नियमित वसूली करता है?'

मैंने तुर्की-ब-तुर्की जवाब दिया, 'तो क्या आप चाहते हैं कि दलित लोग आज भी फटा कुरता पहनें और नंगे पाँव घूमते रहें? क्या उन्हें दूसरों की तरह अच्छा खाने, अच्छा पहनने और अच्छा दिखने का अधिकार नहीं है?'

शर्मा जी तनिक भी विचलित नहीं हुए, 'अधिकार है, पूरा अधिकार है। बल्कि मैं तो कहता हूँ कि सबसे पहला अधिकार उन्हीं का है। हमने इतने लंबे समय तक उनके साथ जो गंदा सलूक किया है, उसका प्रायश्चित्त यही है कि अब उन्हें सबसे पहली पाँत में बैठाया जाए। अफसोस इस बात का है कि मायावती ने इस तरफ बिलकुल ध्यान नहीं दिया। वे सभी दलितों का हिस्सा अकेले डकारना चाहती हैं। यह सामाजिक न्याय नहीं, सामाजिक अन्याय है। दलितों को पहले ऊँची जात वालों ने चूसा, अब वे अपने नेताओं द्वारा ही चूसे जा रहे हैं।'

मैं निरुत्तर होने को तैयार नहीं था, 'दलित आपस में क्या करते हैं, इससे आपको क्या मतलब? आप उन्हें उनका हक दीजिए और घर जाइए।'

शर्मा जी ने अपने परिचित लहजे में कहा, 'तुम मूर्ख हो और मूर्ख ही रहोगे। अरे, जो दलित मुख्यमंत्री खुद दलितों के साथ न्याय नहीं कर सकता, वह गैर-दलितों के साथ खाक न्याय करेगा? सरकार दलितों की या ऊँची जात वालों की नहीं होती। वह सबके लिए होती है। मायावती यह मान कर चल रही हैं कि सरकार सिर्फ उनके लिए है। इसलिए वे सबसे पहले और सबसे अधिक न्याय अपने साथ कर रही हैं।'

'क्या इसीलिए उन्हें इस बार जन समर्थन नहीं मिला?' मेरे मुँह का स्वाद बिगड़ने लगा।

'और क्या? जो राज्य सरकार के इम्तहान में फेल हो गया, उसे केंद्र सरकार के इम्तहान में कौन बैठने देगा?'

मैंने कहा, 'कोई नहीं।' और चलता बना।


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